क्या लिखूँ...कहाँसे शुरू करुँ? वंदन और निम्मी के बारेमे बताना...?कितना पीछे चली जाऊँ....मन टटोल रही हूँ...
वंदन, मै और निम्मी, एकदूसरेको बचपनसे जानते थे...महाविद्यालायके दिन आए तो, वंदन ने अपनी पढाईके लिए दूसरा शेहेर चुना...मै और निम्मी उसी शेहरमे, लेकिन अलग, अलग विषय होनेके कारण दो भिन्न महाविद्यालायोंमे पढ़ते रहे.....
जितना पाठ्शालाके दिनोंमे एकदूसरेके घर आना जाना होता था, अब कम हो गया...मैंने अपनी स्नातक की पदवी पा ली और साहित्य विषय मेही MA करने का निर्णय ले लिया। निम्मीने मास communication का कोर्स ले लिया।
अक्सर छुट्टियों मे वन्दनसे मुलाक़ात हो जाती। वंदन ने मेडिसिन शाखा चुनी थी। MBBS के बाद उसने अपनी internship मुम्बईमे पूरी की...तेज़ दिमाग़ था...लगन थी...सर्जरी शाखा चुन वो UK चला गया....FRCS भी बन गया....
निम्मी ने अपने पसंदके लड़केसे शादी कर ली...वो व्यक्ती उसके महाविद्यालय के faculty पे था। सुलझा हुआ....स्नेहिल और हँसमुख...परिवारभी खुले खयालात का...दोनोंके परिवारवाले प्रसन्न थे...
निम्मीके ब्याह्के चंद दिनोबाद मेराभी ब्याह हो गया...अब हमलोग वाकई बिछड़ गए...ख़तोकिताबत एकही ज़रिया था तब...या कभीकबार फोन....संपर्क बनाए रखनेका...
वंदन के साथ तो मानो संपर्क नाके बराबर रहा....निम्मीकी खबरभी मुझे अधिकतर मेरे नैहरवालों से मिलती...मेरा पीहर एक गांवमे था....वहाँ तो फोन नहीही था...
दिन महीने साल गुज़रते रहे....अपने, अपने उतार चढाओं के साथ हम अलग, अलग मोडोसे मुड़ते हुए, जीवन पथपे चलते रहे...
वंदन का भी ब्याह हो गया था...उसकाभी अपना परिवार था...वो UK मेही स्थायिक था...उसकीभी ख़बर मुझे अपने नैहरसेही मिल जाती...
मेरी और निम्मीकी शादीको १४/१५ साल हो गए थे...निम्मीको दो बेटियाँ थी....वंदन को कोई औलाद नही थी...मै कभी उसकी पत्नीसे मिलीही नही थी...नाही निम्मी....मेरे परिवार तथा बच्चों के चलते, मेरा अपने नैहर आना जाना काफ़ी दूभर हो गया था...बीमारियाँ, स्कूल, परीक्षाएँ...सभी कारण मौजूद रहते....
और एक दिन ख़बर मिली कि , निम्मीके पतीका एक सड़क दुर्घटना मे अंत हो गया....कितना सुखी परिवार था...मानो किसीकी नज़र लग गयी....
निम्मी के ससुरालवालों ने उसे अपनी बेटीही माना था....उसे हर तरहसे मनोबल दिया...अपना दुःख भूल, उसके सास ससुर, उसीकी चिंता करते....मै ख़ुद उसके पास कुछ दिन गुज़ार आयी...
इस घटनाकोभी देखतेही देखते एक साल हो गया...अबके, बड़ी मुद्दतों बाद मुझे अपने नैहरमे कुल २५ दिन बितानेका मौक़ा मिला....एक रोज़ शाम ऐसेही हमसब बैठे हुए थे कि , मुझे वंदन के बारेमे पूछ्नेकी सूझ गयी....और सुना कि उसका तो ब्याह कबका टूट गया....! ३/४ साल हो गए उस बातको....! और अब तो वो भारत लौट आनेके प्रयासमे था....!
एक ओर ख़ुशी हुई कि, अपने बचपनका साथी भारत लौट रहा है...दूसरी ओर दुःख हुआ कि, उसके जीवन मे इसतरह से अस्थैर्य आ गया....
मै लौट गयी अपने ससुराल....कुछ छ: माह बादकी एक बात बता रही हूँ...निम्मी और उसके परिवारवाले , छुट्टियों मे घुमते घामते हमारे शेहेर आ पोहोंचे...मै बेहद खुश हुई...पर मनही मनमे एक बात आही गयी...काश निम्मी, अपने पतीके रहते, एक बार तो आयी होती...!
उन लोगोंको आए २/३ दिनही हुए थे, कि मुझे वंदन के ,उसी शेहेरमे आनेकी ख़बर मिली...मैंने उसके साथ बडी शिद्दतके साथ संपर्क किया...उसे आग्रह किया, कि, वो मेरे घर ज़रूर आए...कि,निम्मी भी आयी हुई है, अपने परिवारके साथ...उसने सहर्ष मान लिया...मैंने सभीको भोजनपे आमंत्रित किया....
लग रहा था, मानो अपना बचपन लौट रहा है...क्या, क्या, बातें होँगी...कितना अरसा हो गया....कितना कुछ कहनेके लिए होगा...कितना कुछ सुननेके लिए होगा....निम्मीकी खामोशी, उसे घेरे हुई उदासी, कुछ लम्हों के लिए दूर होगी...
बडेही चावसे मैंने खाना बनाया...घर सजाया....और इंतज़ार करने लगी...सभीके आनेका....निम्मी तथा उसका परिवार एक अथितिग्रुहमे रुके थे....मेरे लाख कहनेके बावजूद कि, मेरेही घर रुकें....मैंने ३ बार वहाँ फोन कर पता किया...आ तो रहे हैं ना...वंदन कोभी उसके सेल्पे संपर्क करती रही...अपने घरका पता समझाती रही....
क्रमशः
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4 comments:
आपने तो सस्पेंस खडा कर दिया :) इन्तेजार गतांक के बाद
agey padney ki utsukta rehegi.
लाजवाब . अब आगे की प्रतीक्षा है.......
रोचक,प्रतीक्षा है...
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