Tuesday, May 26, 2009

मात्रु दिवस...१

Saturday, May 9, 2009

कई बार ऐसी यादें घिर आती हैं अतीतके गर्दिशमेसे उभरके...के बेसाख्ता बह निकलती हूँ...
येभी नही समझमे आता कि किस क्रममे लिखूँ..इस्तरह्से एक बाढ़ आती है....
शायद जो क़रीबका अतीत होता है,वो ज्यादा छलता है...
इसीपे एक मालिका शुरू करने जा रही हूँ..जहाँ एक मुक्तीधारा बेहेने दूँगी..अनिर्बंधित...लेकिन, साफ़ इतनी के जिसकी गहरायीका एहसास ना हो...पूरी पारदर्शक....लेकिन सिर्फ़ अपनेआपको कुरेदूँगी.....किसी औरको नही...के ज़िंदगी ने समझाया, वो मेरा अधिकार नही...


सुनती आयी हूँ, मात्रु दिवस के बारेमे, पिछ्ले कुछ सालोंसे....
मेरी अपनी बेटीके जनम दिवस के पासही होता है..बल्कि,उसी दिन....
जिस दिन वो जन्मी, एक माँ जन्मी....इसलिए हम दोनोका जन्म दिन तो एकही दिन होना चाहिए...
शायद मेरी माँ और मेरा जनम दिन भी एकही दिन होना चाहिए..कि मैही उनकी पहली औलाद थी...


उस दिन वो, मेरी लाडली, मुझे कितना याद करती है, करतीभी है या नही, मुझे नही मालूम...
हाँ, मुझे ज़रूर याद आती है...दिल करता है उसे पूछूँ ," क्या मैभी तुझे याद आती हूँ, मेरी बिटिया? या तेरी ज़िंदगी की तेज़ रफ़्तार तुझे इतनी मोहलत ही नही देती....ना देती हो तो, शिकायत भी नही..
तेरा जन्मदिवस तो मै भूलही नही सकती...कि एक माँ का उस दिन जन्म हुआ था..मातृत्व क्या होता है,इसका एहसास हुआ था...
बोहोत कुछ बताने कहनेका मन है तुझे...लेकिन डर भी जाती हूँ...अब तू बड़ी हो गयी है...शायद मुझसे अधिक सयानी....


बचपनको याद करती हूँ तेरे..तो अनायास आँखें भरही आती हैं...बोहोत तेज़ीसे फिसल गया मेरे हाथोंसे..मेरी बाहोंसे...अपनी बाहों में तो तुझे ठीकसे भरभी नही पाई..ये ज़िंदगी की ज़ंजीरे थीं, जो मेरे हाथ बाँधे हुई थीं..लेकिन मनकी अतृप्त इच्छाएँ, कभी तो अपने खूने जिगरसे, अपने जिगरके तुकडेके नाम ज़रूर लिखूँगी....
लिखूँगी, के, तेरे साथ क्या, क्या खेल रचाना चाहती थी...तेरे साथ खेलके तुझे खिलखिलाना चाहती थी..और चुपचाप अपने आँचल से अपने आँसू पोंछ लेना चाहती थी..

गुड्डे गुड्डी के ब्याह रचाना चाहती थी...झूट मूटकी शादी...झूट मूट की बिदाई...झूट मूट की दावतें...झूट मूट के खाने, वो निवाले,जो तू मुझे खिलती, और पूछती," माँ, अच्छा लगा?"
मै गर कहती,"हाँ, बोहोत अच्छा लगा,"तो तू झट कहती,
"तो लो मुँह खोलो, और खाओ",...फिर एक झूठ मूट का कौर...
हूँ...ये खेल तो खेलेही नही गए...और अब क्या खेलेंगे?

क्रमश:

1 comments:

ललितमोहन त्रिवेदी, May 10, 2009 7:50 AM

शमा जी ,मेरे गीत पर आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !आपके आलेख ध्यान से पढ़ रहा हूँ और चमत्कृत होता जा रहा हूँ ! माँ ,बेटी ,दादा के परम आत्मीय संस्मरणों से लेकर police reforms जैसे जटिल विषय पर कलम चलाना इतना आसान तो नहीं होता परन्तु आपने इसका निर्वाह बहुत ही कुशलता से किया है और आप निश्चय ही इसके लिए प्रशंसा की पात्र हैं ! मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकारें !

11 comments:

Unknown said...

mujh jaise hasya kavi ko bhi bhavuk kar diya aapne ...............
aapki lekhni ko pranaam
BADHAI BADHAI BADHAI

Deepak "बेदिल" said...

maa par ..wese hi ase muda ho jata hai jo apne aap me hi ek emotional muda hai..bahtareen soch hai.....likhte rahiye or likhne ka intjaar hai
Deepak

श्यामल सुमन said...

शमां जी,

लगातार आपके अनुभवों को पढ़ रहा हूँ। आप एक साहसपूर्ण काम कर रहीं हैं। मुझे लगता है कि लेख में कुछ संपादन की जरूरत है। जैसे मातृदिवस - मात्रु दिवस लिखा गया। इस प्रकार की अन्य कई उदाहरण हैं। मुझे लगता है पोस्ट करने के पहले फिर से पढ़ने से इससे निजात मिल सकती है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

श्यामल सुमन जी से सहमत हूँ। ऑफलाइन लिखें और पोस्ट करने के पहले वर्तनी और व्याकरण की अशुद्धियाँ ठीक कर दें।

ढेर सारी शुभकामनाएँ।

श्यामल सुमन said...

शमा जी,

जैसा कि आपने मेरे ब्लाग के टिप्पणी में लिखा है - कृपया अपना इमेल मुझे भेजें मैं कोशिश करूँगा कि आपको आगे से लिखने में आसानी हो। आपका इमेल नहीं मिला इसलिए इस प्रकार सूचित कर रहा हूँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

शमा जी, आप के उत्तर का सही स्थान यहाँ है, लिहाजा मेरे ब्लॉग पर किए गए पोस्ट को यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ। शेयर्ड इंटर्नेट की अपनी सीमाएँ होती हैं, मैं अवगत हूँ। परंतु मैंने आप के बाकी पोस्ट भी पढ़े हैं। मुझे नहीं लगता कि शेयर्ड इंटर्नेट की सीमाएँ आप के उपर लागू होती हैं। ब्लॉग माध्यम प्रिंट माध्यम जैसा ही है और प्रिंट में गलत वर्तनी देख कर जितना दु:ख होता है, उतना ही ब्लॉग में भी देख कर होता है। इसलिए थोड़ी सतर्क रहें। आप के पोस्ट्स अच्छे हैं, इसमें कोई शक नहीं।
"
Shama ने कहा…

Aapkee rachnaape kuchh bhee tippanee karun, ye ikhtiyaar anhee...ya qabiliyat nahee..!
Jaanti hun, ki,kayee baar bohot jald baazeeme "post" kar detee hun..lekin, offline likh,baadme kisi karanvash "transliteration" hohee nahee pata...mujhe online hee likhna padta hai..aur yaa to tabhee ke tabhi sampadan ho yaa phir "post" ke pashchyat..warna, "curser" aise daudta hai, jaise chooheke peechhe billee lagee ho..!

Ho sake to in mushikilaat ko/galtiyonko maaf karen..nazarandaz karen, aisa to nahee keh sakti..! Kyonki inhee tippaniyon dwaara seekhtee rehtee hun!

Net aksar share karti hun...to samaypebhi kaafee maryada rehtee hai..aapkee shukrguzaar hun,ki, itnee wyast taake baavjood aaplog padhte hain, aur comment bhee karte hain!
Tahe dilse dhanywaad!
May 27, 2009 9:20 PM"

rajendra said...

माता में हो यदि अज्ञान, बच्चे कैसे बने महान्।
सुस्वागतम्...

shama said...

Rajendraji,
Aapka profile "uplabdh" nahee,isliye merehee lekhpe aapki tippaneeka uttar de rahee hun..!
Uttar ye ki, aapkee tippaneeka matlab samajhi nahi..!
Kaun poorn gyani hota hai? Aur bachhon ko mahan nahee sirf achhe insan bana chahti thi, ek maa ke haisiyatse..!

Anonymous said...

बेहतर है शमा जी...
शुभकामनाएं.....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sadhu,sadhu. narayan narayan

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये

गार्गी