"अम्मा, आज बेहद थक गयी हूँ...फिरभी रायभान के बारेमे लिखनेका मोह टाल नही पा रही हूँ...
हाँ, वही क़िस्सा बयाँ करनेके खातिर आज लिखना शुरू किया....
पता नही क्यों,रायभान को बस्ती परके सारे बच्चे, हिक़ारत से देखते थे...उसके साथ बुरी तरहसे पेश आते थे...जैसे कि,वो बतख की कहानी...उन बतखों मे एक हँस था..जिसे सब कुरूप कहते थे....रायभान की माँ, हमारे घरमे काम करती थी....
"सब बच्चे हमारी घरकी सीढियों पे बैठ, कुछ खेल रहे थे...मै बगीचे से आयी और सीढीयाँ लाघते हुए, रायभानको एक लात मार दी...बेचारेने," अरे, हटता हूँ, हटता हूँ," कहा और हट गया...
अम्मा, आप सब देख रहीँ थीं...आपने अन्य बच्चों को एक तरफ़ बिठा दिया ...मुझे और रायभानको अपने सामने बुलाया...
"मुझसे बोलीं," इसके सामने कान पकडके १० बार उठक बैठक करो, और हर बार माफी माँगो...कहो,कि, ऐसी हरकत फिरसे कभी नही करोगी..!"
"बेचारा रायभान बडाही सकुचाया-सा एक कोनेमे खड़ा हो गया...
"आपके आगे मना करनेका तो सवालही नही था..जैसा आपने कहा वैसाही मैंने किया......
उसके बाद आपने सब बच्चों को अपने,अपने घर भेज दिया...
मुझे अपने पास,प्यारसे लेके बैठीं और कहा," देखो बेटा, खुदाके आगे सब बच्चे एक जैसे होते हैं...और तुम्हें उसे लात मारके ख़ुशी मिली? तुमने हरकोई उसके साथ ऐसीही चाल चलता है ये देखा और वैसाही किया...हैना? '
"अम्मा, ये शत प्रतिशत सच था...मै खामोश बैठी रही...मेरी उम्र थी कुछ ३ सालकी...लेकिन मैंने ग़लत बात की है, ये मै खूब समझ गयी...
"उस रात मेरे गलेसे खाना उतरा नही..दादा पूछते रहे,कि, मै क्यों खाना नही खा रही...
आपने कहा," कोई बात नही गर एक रात नही खायेगी तो...उसने शामको दूध तो लेही लिया है...फलभी खाया है...नही खा पा रही,तो उसे सो जाने देते हैं।'
"दूसरे दिन सुबह हुई,तो मैंने अपनी माँ और पिताको घरसे नदारत पाया....दादी को पुकारने लगी...वो आ गयीं....
मैंने उनसे पूछा," अम्मा और बाबा कहाँ गए हैं? और वनुमासी,(रायभान की माँ,) क्यों नही आयी? आप क्यों नाश्ता बना रहीं हैं?"
दादीअम्मा ने कहा," तुम्हारे अम्मा -बाबा किसी वजहसे अस्पताल गए हैं...!"
बाबा तो कुछ देर बाद लौट आए...आप नही लौटी....
शाम हुई तो मैंने ज़िद की," दादी अम्मा मुझे बस्ती परके बच्चों के साथ खेलना है...उन्हें बुलाओ ना...और रायभान से मुझे,'डम डम डिगा,डिगा ये गाना भी सुनना है..."
दादी अम्माने मुझे समझाते हुए कहा, " आज नही...अभी कल देखेंगे....! चलो आज मैही तुम्हें कहानी भी सुना दूँगी, और खाना भी खिला दूँगी.."
"अम्मा आप देर रात किसी वक़्त आयीं ...मुझे ठीकसे पता नही चला, लेकिन आपको मेरी बग़ल मे पाके बड़ा सुरक्षित लगा..
"सुबह मेरी आँखें खुली, तो फिर आप मेरे पास नही थीं ...मुझे बस्ती परसे रोने धोनेकी आवाजें आ रहीं थीं...मै कुछ समझ नही सकी...जानती थी,कि, बस्तीपरके कई मर्द अपनी बीबिओं को मारते हैं..ऐसेमे वो रोती,रोती माँ या दादी के पास आती थीं..अब जब माँ ख़ुद बस्तीपे मौजूद है,ये मुझे बताया गया, तो मुझे बेहद हैरानी हुई,...माँ के होते हुए भी क्या उन औरतोंको मारा जा रहा है?
मैंने दादी अम्मासे कहा," मुझे बस्तीपे जाना है...मुझे जाने दो ना.....!"
"दादीअम्मा ने मुझे अपनी गोदीमे लेके कहा," अभी नही...शामको देखेंगे......"
"लेकिन आप कलसे मुझे रोक रहीं हैं..मुझे वो गाना सुनना है रायभान से...उसे तो बुला लो ना..!"मैंने अपनी ज़िद कायम रखी......
"अंतमे दादी अम्मा ने शायद सोचा कि, मुझे चंद बातें औरोसे पता चलें, उस बनिस्बत, वो खुद्ही बता दें तो बेहतर होगा......
"वो कहने लगीं,तो मैंने गौरसे उनके चेहरेकी ओर देखा...उनकी आँखों मे पानी था..होंठ काँप रहे थे,....... उन्हों ने कहना शुरू किया," बच्चे, रायभान अब फिरसे यहाँ कभी नही आयेगा.......!"
"लेकिन क्यों? मैंने उसे लात मारी थी इसलिए? मैंने माफी तो माँगी थी..दादी अम्मा आप उससे कहो ना,कि, मै फिरसे ऐसा नही करूँगी.." मुझे अब रुलाई-सी आने लगी थी...
"दादी अम्माके आँखों से अब पानी बहने लगा था...वो बोलीं," रायभान अब भगवान् जी के पास चला गया है! वो दोबारा हमें कभी नही दिखेगा....!"
मेरा मन एकदमसे धक्-सा रह गया..मै इतना जानती थी,कि, एकबार जब कोई "भगवान्" या "खुदाके" पास जाता है तो फिर कभी नही लौटता...! मुझे यक़ीन हो गया कि,वो मुझीसे रूठके चला गया....मेरे बाल मनपे जो उस समय गुज़री, उसका बयान करना कठिन है.....
"बादमे पता चलता रहा...वनुबाई ने चुल्हेपे बड़े-से पतीलेमे, नहानेके लिए पानी गरम करने चढाया था...रायभान और उसकी छोटी बेहेन छबी, वहीँ पे शायद कुछ उधम मचा रहे थे...वो खौलता पानी, चुल्हेपरसे उलट गया और दोनों बच्चों पे जा गिरा...छबू तो बच गयी...रायभान ईश्वर को प्यारा हो गया....
"मुझे याद है, मै, बोहोद दिनों तक सदमेमे चली गयी थी..खानेके लिए जैसे मुझे बिठाया जाता था, मुझे उबकाई आ जाती थी..मुझे अन्य एक बच्चे ने बताया था,कि, रायभान को भूक लगी थी, इसलिए वो अपनी माँ के पास पोहोंचा था..रोटी माँगते हुए...मुझे अब तो याद नही,कि, मै कितने दिन खाना नही खा पायी....
"अम्मा, अगर आप उस शाम मुझसे माफी ना मँगवाती,तो ताउम्र मै पश्च्यातापकी अग्नीमे जलती रहती...कभी खुदको माफ़ करही नही पाती...आजभी वो सारी बातें मेरे मनमे ऐसे अंकित हैं, जैसे कल परसों घटी हों....
सोचती हूँ, मैंने ऐसी हरकत कीही कैसे? क्या सवार था मुझपे? सिर्फ़ किसी अन्य की देखा देखी कर दी? लेकिन,जब कभी मुझे ये बात याद आती है तो शर्मसार हो जाती हूँ...जब कभी, डम डम डिगा, डिगा ये गीत बजता है,तो रायभान का भोला-सा चेरा सामने आ जाता है..."
क्रमश:
वर्तनी के लिए माफी चाहती हूँ..कोशिश तो की है, फिरभी गर कुछ typos रह गए हों,तो क्षमाप्रार्थी हूँ!
प्रस्तुतकर्ता shama पर 11:39 AM संदेश का संपादन करें">
लेबल: पश्च्याताप, प्यारी माँ, माँ, माफी., शमा, संस्मरण, हिन्दी
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1 comment:
वो पुरानी सी खुशबू आपके लेखन में अभी तक महक रही है, मुझे उम्मीद है, बहारो की नयी फसल एक बार फिर से जवान होकर नये मौसम का पता देगी।
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