Friday, June 5, 2009

माँ! प्यारी माँ ! ५

"अम्मा! कल शामको आपसे बात हुई...बड़ा ही उदास-सा महसूस हो रहा था...अपने पलंग पे बैठे, बैठे, एक किताब के पन्ने, उलट पुलट करती रही...

रेडियो चल रहा था..'छाया गीत"...उसपे वही गीत बजा, जिसे मै अपनी बेटीकी बिदाई के समय बजाना चाह रही थी...ये दुआएँ उसके लिए कई बार कर चुकी थी,लेकिन बजा ना सकी...जब मै अपने नैहर से बिदा हुई, तो लगा, मेरे सारे अपनों के दिलसे वही दुआ निकल रही है मेरे लिए...'बाबुल की दुआएँ लेती जा , जा तुझको सुखी संसार मिले, मैके की कभी ना याद आए, ससुराल में इतना प्यार मिले...!'

"रफी ने इसे रो रोके गाया था...संगीत निर्देशक इस गानेको धनिमुद्रित कर रहे थे, तो गाते समय, रफी साहब सिसक,सिसक के रोने लगे.....उनसे पूछा गया, कि वे क्यों रोने लगे?
उन्हों ने कहा,'हालही में मेरी बेटीकी मँगनी हुई है...सोचने लगा,कि, वो चली जायेगी, तो मुझे कैसा लगेगा??....यही सारी दुआएँ मेरे मनसे निकलेंगी...'
सगीत दिग्दर्शक ने उनसे कहा, 'आप इसी तरह गा लीजिये...गीत ऐसेही ध्वनि मुद्रित होगा...!'
और वो गीत रफी साहबने सचमे रो, रो के गाया है!!

"अम्मा ! मुझे नही पता, कि, आपने इस गीतको कभी गौरसे सुना या नही...अबकी आओगी तो ज़रूर सुनाऊँगी.....
क्या गज़ब गाया है..सचमे अपनी बेटीके लिए उसके प्रिय जनों के मनमे यही सब आता होगा...और अब जाना, जब मेरी बिटिया ब्याही गयी.......मेरे मनमे भी यही सब आया..."मेरे बाग़ की अए नाज़ुक डाली !तुझे हरपल नयी बहार मिले...!"

"मै सारा गीत यहाँ लिख सकती हूँ,ऐसे भावपूर्ण अल्फाज़ हैं, और उन्हीँ भावों को समेटे गाया गया है....
आप अपने घरसे बिदा हुईं तब आपके अपनों के मनमे भी यही सब आया होगा...'काँटा भी ना चुभने पाये कभी, मेरी लाडली तेरे पाओं में ........'... हैना?
जानती हूँ, कि, आपके सारी उम्र काटों पे चलके कटी.....आपने, खासकर आपके साथ,साथ, दादा-दादी अम्माने, मेरे लिए ऐसीही दुआएँ माँगी...जानती हूँ...फिरभी मेरा सफर काँटों की राहों से गुजरा....के राह मैंने ख़ुद चुनी थी...आपके लिए तो चुनी गयी थी....

"आप अपने खानदाँ की सबसे सुंदर हुनरमंद बेटी थीं...फिरभी राहोंमे फूल बिखरें हो...मुझे तो नज़र नही आए...अफ़सोस के ऐसी दुआ आपको लगी नही...नानी अम्मा को कितना दुःख होता होगा हैना? जानती हूँ, समझ सकती हूँ, मुझे देख आपको कितना दुःख होता रहा ..मैंने देखा है....

"चश्मे-बद-दूर...! शायद आपकी नवासी को ये दुआ लगी....या वो अधिक परिपक्व और संजीदा निकली...जोभी हो...ईश्वर उसे वो सब दे, जिसकी वो हक़दार है...
"अम्मा ! सारी उम्र भी आपके बारेमे लिखने के लिए कम है....हर रोज़ कुछ ना कुछ याद आताही है...आज आपकी बेटी, अपनी माँ के स्वास्थ्य के लिए दुआएँ माँग रही है.....कमसे कम आपको दर्द और तकलीफ तो ना हो...क्या ऊपरवाला मेरी इतनी दुआ सुनेगा?"

3 comments:

Unknown said...

maa toh hai maa
maa toh hai maa
maa jaisee duniya me
hai koi kahan?

ललितमोहन त्रिवेदी said...

शमा जी ! आप माँ भी हैं और बेटी भी ,दौनों की भावनाओं की गहन अनुभूति आपकी रचनाओं में झलकती है पर कहीं कहीं दर्द की खलिश एक टीस सी उभरकर ह्रदय को मथ देती है .....' इश्वर ये मौका मुझे ज़रूर देगा ,ये संवाद अनसुना न रह जाय '.......
बिना लाग लपेट के लिखे ये ज़ज्बात दिल को छू जाते हैं !
आपकी कहानी 'आकाश नीम 'बहुत अच्छी लगी ,इस कहानी का हर पात्र अपनी जगह सही है और positive attitude रखता है !
सत्य को स्वीकारने का साहस हर पात्र को एक नयी गरिमा प्रदान करता है चाहे वह पुरानी पीढी की दादी हो या नयी पीढी की पूर्णिमा और स्टीव,नरेंद्र मीना की तो बात ही अलग है ! बहुत डूबकर लिखती हैं आप शमा जी ,विचार के धरातल भी कहानी सुलझी प्रतीत होती है ! बधाई !

अविनाश वाचस्पति said...

अद्भुत बहुमुखी लेखन प्रतिभा की धनी अपने को सिम्‍पल मानती हैं जबकि वो मिसाल हैं।