Friday, March 27, 2009

एक राह अकेली-सी.....

आसमान नीले रंगका सिल्क। रास्ता बना है हाथ कारघेसे बने सिल्क के पुराने दुपट्टेके तुकडेमे से........जिसपे मैंने तर्खानी होते समय, लकडी का भूसा जमा कर लिया और उपरसे चिपका दिया....आगेकी और जो घांस आदि दिख रहा है, वो पहले तो एक छापा हुआ कपड़े का टुकडा है...उपरसे, कुछ पेंट और कुछ कढाई....पेड़ पूरी तरहसे कढाई करके बनाया है...जानके इसे संस्मरण में डाला क्योंकि ये चित्र एक यादगार तसवीर परसे बनाया गया है....

1 comment:

'sammu' said...

dikh rahee hai ek veeran see rah jatee huyee, chitij tak neele aasman kee taraf.udas udas .door tak zindgee ka koyee bhee nishan naheen !inheen rahon pe kash do koyee rahee hote ?