इस घटनाके बाद दिन बीत ते गए....मेरे पतीने बता दिया कि, उन्हों ने किसी कारन, मुम्बई मे पदभार सम्भालाही नही....उन दिनों वे तकरीबन एक माह बिना किसी पदके रहे....अंत में,उनकी दोबारा अकादमी मेही पोस्टिंग हो गयी...
एक सप्ताह के भीतर,पुलिस सायन्स कांग्रेस का आयोजन करना था...ऑल इंडिया स्तर का आयोजन....वोभी सफल हो गया..उस के पश्च्यात, ३/४ माह के अन्दर,अन्दर, मेरे पती का मुम्बई में ही तबादला हुआ...हाँ...इस वक़्त पोस्ट अलग थी...वे आगे निकल गए...
बात एक शाम की है.....मै, विमला और उसके पतीसे मिलने उनके घर गयी थी...याद नही कि ,किस सन्दर्भ मे ये बात छिडी जो मै लिखने जा रही हूँ...जिसने मुझे स्तंभित कर दिया और इस्क़दर असहायभी....! लगा, काश ! यही बात बीजी,खुले आम, अपने मृत्यू के पूर्व, मुझसेही नही, मेरे पतीसे भी कह देतीं....जो उन्हों ने विमला तथा उनके पतीसे कुछही रोज़ पहले कही थी...वो गिरीं उसके केवल ४ दिन पूर्व...!
विमला तथा उनके पतीसे वे खुलके बात किया करतीं ....मेरी भी कोशिश रहती कि, कुछ लोग हों, जिनसे, वे खुलके बतियाँ सकें....ऐसेमे अक्सर मै वहाँसे हट जाया करती...विमलाके पती मुझसे बोले, " जानती हो, उन्हों ने मुझसे क्या कहा ???"
" नही तो...! मुझे कैसे पता होगा ??" मैंने जवाब दिया...
विमलाके पती बोले," उन्होंने कहा, कि, मैंने इस बहू के साथ, पहले दिनसे, बेहद नाइंसाफी की है....अपनेही बेटे का घर तोडके रख देनेमे कोई कसर नही छोडी....जब कि, इसने मेरी सबसे अधिक खिदमत की.....गुस्से में आके,इस पे हम सभी ने तरह,तरह के, लांछन लगाये......आज बेहद शर्म सार हूँ..अपने बेटे से भी कहना चाह रही हूँ,कि, इसकी इज्ज़त हमेशा करना...ये बेहद सरल स्वभाव की औरत है..."
उन्हों ने औरभी काफ़ी कुछ कहा....यह भी, के, कभी आगे उनकी बहू पे कोई भी लांछन लगे और गर वो बात,इन पती-पत्नी को पता चले, तो, वो, बहू का साथ निभाएँ......
अजीब इत्तेफ़ाक़ रहा कि,बाद मे, उन पती पत्नीसे, उन्हीं दोनोकी व्यस्तताके कारण, मेरा अधिक संपर्क नही रहा....विमलाके पती अक्सर विदोशों मे भ्रमण करते रहे और मुझे उनसे अपने बारेमे कुछभी इस तरह से कहना अच्छा नही लगा....हमेशा लगा कि, ये मेरी गरिमा के ख़िलाफ़ है.....
बीजीको गुज़रे अगले माह १५ साल हो जायेंगे.....जो भी हुआ ज़िन्दगीमे.....बोहोत से शिकवे रहे...मेरी अपनी बेटीको लेके सबसे अधिक.....जो मैंने उनसे कभी नही कहे....लेकिन आज उनकी बड़ी याद आ रही है..
मेरी बेटीको उनसे आजभी सख्त नफ़रत है...पर आज शाम उसे मैंने ये बात बतायी....उसने कह दिया," अब क्या फायदा? अब तो कितनी देर हो चुकी....समय रहते उन्हों ने क्यों ये बात नही कही?? आज तुम मेरे आगे कितने ही स्तुती स्त्रोत गा लोगी, मुझे कोई फ़र्क़ नही पड़ने वाला.......जो तुम्हारे साथ या मेरे साथ होना था हो गया....मुझे ये सब बताओ भी मत माँ.... उनपे और अधिक गुस्सा आता है..."
मै खामोश हो गयी....मेरे पास उसे देनेके लिए कोई जवाब नही था......जैसे उनके मृत्यु के बाद महसूस हुआ...जैसे, जिस दिन विमला के पतीने मुझसे कुछ कहा, उसी तरह कल और आज, या पता नही पिछले कितने साल ये महसूस हुआ....ज़िंदगी फिर एकबार आगे बढ़ गयी...छल गयी...मै देखती रही...कुछ ना कर सकी.....दोस्त दुश्मन बन गए....ग़लत फेहमियों का अम्बार खड़ा होता रहा....
मै, मेरे अपनों के लिए, जीवनकी क्षमा माँगती रही....हर बला आजभी मुझे स्वीकार है...गर मेरे अपने महफूज़ रहें......जानती हूँ, कि, इस संदेश को शायद ,अपनी मृत्यु के बाद, अपने पती या बच्चों को पढने के लिए कहूँगी....मेरा हर पासवर्ड मेरी बेटी के पास है.........
आज सुबह ३ बजे मैंने अपना dying declaration भी पोस्ट कर दिया है....हर काम मै अपने इंस्टिक्ट से करती हूँ....उस वक़्त अपने आपको चाह कर भी, रोक नही पाती...जैसे कोई अज्ञात शक्ती मुझे आदेश दे रही हो, जिसका मुझे पालन करनाही है...उसके जोभी परिणाम हो, भुगतने ही हैं....यही मेरा प्राक्तन है, जिसे कोई बदल नही सकता....ना अपनी राह बदल सकती हूँ, ना पीछे मुड़ के चल सकती हूँ...हर किसी की तरह आगेही चलना है....आगे क्या है वो दिख भी रहा है, लेकिन टाला नही जा सकता....पढने वालों को अजीब-सा लगेगा, लेकिन यही इस पलका सत्य है....
समाप्त।
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9 comments:
काश आपकी बी.जी की यह बात आपके सामने जाहिर हो जाती तो अच्छा रहता,परन्तु होनी को कौन टाल सकता है,यही नियति है ।
बहुत सुंदर कहानी
धन्यवाद ................
"शुक्रिया आपका......"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
sukriya maine aab aapki comment padi.anurode hai ki aap comment kerte rahe
http://sameerpclab2.blogspot.com
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मुझे उनसे अपने बारेमे कुछभी इस तरह से कहना अच्छा नही लगा....हमेशा लगा कि, ये मेरी गरिमा के ख़िलाफ़ है.....
शमा जी पति-पत्नी के बीच किसी तरह का अहं नहीं होना चाहिंए, दोनो को हर बात कह देनी चाहिए औऱ कोई बहस या दोषारोपण नहीं करना चाहिए....आजकल हर कोई स्पेस की बात करता है...पर पति-पत्नि दोनो को ही....आई रिपिट....दोनो को घुलमिल जाना चाहिए..अलग-अलग व्यक्ति को एकजुट होना चाहिए....यही सही भारतीय जीवनशैली है..स्पेस हमेशा मतभेद को जन्म देता है..क्योंकी स्पेस में अहं आकर रहने लगता है.....प्रशंसा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए औऱ गलती की तरफ प्यार से इशारा करना चाहिए...
मैं शादी-शुदा नहीं हूं, पर आग से हाथ जलता है और रोटी भी पकती है..यह समझने के लिए आग में हाथ डालना जरुरी नहीं...
शमा जी ! मैं बहुत प्रशंसक हूँ आपकी रचनाओं का ! मानवीय संवेदनाओं का इतना यथार्थ और संवेदनशील चित्रण बड़े बड़े साहित्यकार भी यदा कदा ही कर पाते हैं ! आपको तो इसमें महारत हासिल है !लिखना अलग बात है और जिए हुए को अभिव्यक्त करना अलग बात है ,रचना यहीं से कालातीत (beyond the time ) होती है !
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
आप के संस्मरण में दिलचस्पी ली क्यूं कि मै स्वयं भी तो एक सास हूँ । इस संस्मरण से एक सबक तो ले ही सकते हैं कि गलत आरोप कोई किसी पर न लगाये और गलती की माफी अगर सामने ही मांग ली जाय तो मन साफ हो जाते हैं । आप को भी कितना अच्छा लगता यदि आपकी सासू माँ आपसे ये बातें स्वयं ही कहतीं ।
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