Saturday, September 12, 2009

गिल्हेरी..१) ये वो नही!

इन यादों की शुरुआत होती है बचपनसे...slide में एक गिल्हेरी दिख है ना? पर ये वो नही...जिसका क़िस्सा बताने जा रही हूँ....

११/१२ साल की उम्र रही होगी मेरी..एक दिन एक गिल्हेरी का बच्चा मुझे और मेरी माँ को नीम के पेड़ के नीचे गिरा मिला...मादा थी..बेचारी तड़प रही थी...अन्य पँछी उसे चोंच मार रहे थे...हमने उसे उठा लिया...नरम कपडेमे लपेट मरहम लगाया...स्याही के dropper से दूध पिलाया...और तभी से उसका नाम सोनू पड़ गया...

या तो माँ की साडी में घुसी रहती या जब मै घरपे होती तो मेरे blouse या frock के collar में छुपी रहती...भूक लगती तो चिकुड देती...धीरे वो इधर उधर आँगन में घूमने लगी...लेकिन जब कभी," सोनूsssssss"...ये आवाज़ सुनती,जहाँ होती दौडी चली आती...ऐसेमे मै उसे कभी मूँगफली , कभी आटा तो कभी कुछ और, खिला देती...फलों की शौकीन तो ये जाती रहती ही है...जिनकी हमारे घरमे कमी नही थी..दादा ने सैंकडो पेड़ लगा रखे थे...

रात में सोने के लिए वो ज़रूर घरमे घुस आती...छोटा-सा मोधा था, उसके नीचे हम री और कपड़े के तुकडे डाल देते और ये उसके नीचे सो जाती।

गरमी का मौसम था। हमारे बिस्तर-बिछौने घरके बाहर लगे थे। लेकिन इसे उसी कालीन पे, मोढे के नीचे सोना होता।

हमारे यहाँ एक औरत काम करती। अक्सर बिछौने वही लगाती। सुबह बाहर से बिछौने उठा लाई और मोढा हटा के उसपे गद्दा पटक मारा...सोनू दम घुट के , दबके मर गयी...

मुझे याद है, मै बड़ा रोई थी...!

लेकिन slide में दिखने वाली गिलहरी और ही है...उसकी कहानी अगली बार...