कुछ ऐसे निजी वजूहात बने कि, मुझे अपनी श्रीन्ख्लासे काफी कुछ डिलीट करना पडा...अज़ीज़ और काबिल पाठक दोस्तों से माफ़ी चाहती हूँ...उन्हें एक फैसला करनेकी गुहार की थी...उसे तो ख़ुद मैनेही अपने आपको सुना दिया.... चंद ग़लत फेहमियों के रहते, सबने मौन रखना बेहतर समझा होगा.......
मै तो केवल अपने बच्चों की परवरिश को लेके चर्चा कर रही थी...के न सिर्फ़ अपने माता पिताके या अन्य परिवारके सदस्यों के बर्ताव का औलाद पे असर होता है, बल्कि, जड़ें माता-पिताके बचपनमे और उसके पूर्व तक चली जाती हैं....
मालिका लिखते, लिखते, कई सारे राज़, ख़ुद मेरे आगे उजागर होते गए....पाठक गर सवाल ना पूछते, तो मै इतनी गहरायी तक आत्मनिरीक्षण नही कर पाती...अंतमे हर उस रेहनुमाकी शुक्रगुजार हूँ, जिसने मेरे साथ, साथ ये सफर किया...मुझे नही मालूम, के अब भविष्य में मुझे अपनी जिंदगीके इतने निजी पन्ने खोलनेका मौक़ा मिलेगा या नही....उन अज़ीज़ पाठकों से रु-ब-रु हो पाऊँगी फिर कभी...?शायद नही....मेरे हालात अब और इजाज़त नही देंगे....जिन हालातों से गुज़रते हुए मालिका लिखी, उनसे फिर एकबार रु -ब-रु होना, मेरी शक्ती और साहसके परे है....अब एक लक्ष्मण रेखा खिंच गयी है...और येभी बताती चलूँ..के मैंने "The light by a lonely path" इस ब्लॉग पे लिखना बंद कर दिया है...
या ऐसे कहूँ, जो पहलेभी कहा था," अब सेहर होनेको है,
ये शमा बुझनेपे है,
जो रातमे जलते हैं,
वो सेहर कब देखते हैं?"
कोईभी "शमा" ना ख़ुद होके जलती है, ना ख़ुद होके बुझती है.....उसके अंधेरोंमे कोई शामिल नही, और उजालों में उसकी ज़रूरत नही....हर सुबह का तारा, पैगाम लेके आता है, उसे बुझानेका समय जताता है....
मै, शमा, दुआ करती हूँ, कि आप सभीकी राहें हमेशा रौशन रहेँ...चिरागों के मेले लगते रहेँ....कोई एक शमा जले या बुझे, फर्क नही, जिंदगीके उजाले उसपे मुनहसर ना रहेँ....
समाप्त।
Sunday, April 19, 2009
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